#हम यह लंका भी जीतेंगे
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● ( चीन से आए वुहानव को लेकर मैंने वर्ष २०२० नौ एप्रिल को लिखा था कि “हम यह लंका भी जीतेंगे” और हम विजयी हुए। ) ●
★ #हम यह लंका भी जीतेंगे ★
पथ चतुष्पथ लुटे पिटे
वैधव्य भोगती वीथियां
लौटा बचपन वनों का
गिरिकंदरा खिलती सीपियां
औसान झेलती दीवारें
आंगन खोजते किलकारी
कर आनन से दूर हुए
मति की गति हुई बेचारी
मंदिर की देहली हुई अवाक्
घंटा निद्रालीन हुआ
लोभ मोह और काम क्रोध
सब अहंकार अधीन हुआ
हे मात इस कलिकाल में
मार्कंडेयवचन प्रमाण हुआ
सांस लीलती इक योगिनी
वुहनिया जिसका नाम हुआ
औंधा कपाल मिचती आँखें
जीवनरथ विपदा भारी
दीपों की अवलियां सजा रहा
उजड़े बागों का पटवारी
पृथुसुता फिर हांफती
अभय मांगती संतानों से
दानव मानव के भेस में
झांक रहा है वुहानों से
पलों विपलों की एक चूक
सदियां चुगती पलकों से
नदियां जैसे हों थक गईं
मीन हीन ज्यों शल्कों से
नुकीला कंटीला एकांतवास
दिवस बरस से बीतेंगे
रामाश्रय अमोघ अस्त्र
हम यह लंका भी जीतेंगे
धर्मध्वजा के हम वाहक
सनातन संस्कृति अखंड सधवा
दुपहरी होवे कैसी कैसी
दोनों छोर सदा भगवा
युगबीच चमकती बिजलियां
नभ खिला खिला आभास
प्राची से उठेंगे फिर दिनकर
मन में है विश्वास . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२