हम मिले भी तो ऐसे
हम मिले भी तो ऐसे,अनजानी सी डगर में,
अब भी रुकी थी मेरी, रूह उस नज़र में,
मय्यत में मेरी वो भी, सज के संवर के आये
फूलों से सजा मैं भी, जीवन के इस सफ़र में।
ये कैसा सिलसिला था, किस्मत ने जब मिलाया,
मैं चाहकर भी उनको, दिल से लगा न पाया,
मैं राख हो चुका था, वो हो गए पराये,
पर इस बात की ख़ुशी थी, वो मय्यत पे मेरी आये।