हम भी पहरेदार बनेंगे
हम भी पहरेदार बनेंगे
हम भी चोरी सीखेंगे
संग हमारे हाकिम है हम
सीनाजोरी सीखेंगे…
जो दाता ने दे रक्खा है
जीने को पर्याप्त है
लेकिन क्या हो बढ़े पेट का
जहाँ वासना व्याप्त है
अपनी घी चुपड़ी रोटी से
तृप्त नहीं हो पाते हैं
औरों के बटुए मोटे हैं
यही सोंच अकुलाते हैं
भरे पेट की संतुष्टी को
आदमखोरी सीखेंगे।
हम भी पहरेदार बनेंगे
हम भी चोरी सीखेंगे।
हम हैं इच्छाधारी
अपना रूप बदल लेते हैं
छांव छीनकर, अपने
सर की धूप बदल लेते हैं
हम हैं बात बहादुर
बात बनाकर हम जीतेंगे
वरना घात लगाकर
लात चलाकर हम जीतेंगे
सारी दुनियाँ बाले हमसे
रिश्वतखोरी सीखेंगे
हम भी पहरेदार बनेंगे
हम भी चोरी सीखेंगे…..
संजय नारायण