*हम भी क्या करें ? (कोरोना-कहानी )*
हम भी क्या करें ? (कहानी )
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थके कदमों से अविनाश घर के भीतर दाखिल हुआ । घुसते के साथ ही टाई ढीली की और जूते उतार कर एक तरफ सोफे पर निढाल होकर गिर पड़ा । पत्नी दमयंती ने जब यह हालत देखी तो घबरा गई । “क्यों क्या हो गया ? ठीक तो हो ?”
अविनाश ने गहरी साँस ली और सूखे गले के साथ अपनी जीभ को घुमाते हुए कहा “सेठ जी ने वेतन आधा कर दिया ।”
“ऐसा कैसे कर सकते हैं सेठ जी ! आधी तनखा में घर कैसे चलेगा ?”
“यही तो मैं कह रहा हूँ ? अब घर कैसे चलेगा ?”
“आपने विरोध नहीं किया ? सेठ जी को बताते कि हम घर कैसे चलाएंगे ? हम तो बर्बाद हो जाएंगे ।”
” मैंने भी कहा और भी सब ने कहा । लेकिन सेठ जी नहीं माने । कहने लगे कि उनकी दुकान भी तो घाटे में चल रही है । अब बीस कर्मचारियों का वेतन निकालना उनके बस की बात नहीं है । जिसको आधे वेतन में काम करना है करे , नहीं करना है चला जाए । ”
“फिर सभी ने मान लिया ?”- दमयंती ने प्रश्न किया ।
“नहीं । दो लोगों ने तो फौरन नौकरी छोड़ दी । कहने लगे कि आधे वेतन में काम नहीं करेंगे ।”
“आपने क्या किया ?”
“क्या करता ? कम से कम सेठ जी के पास वेतन तो मिल रहा था । अगर नौकरी छोड़ देता तो इस आधे वेतन पर भी कहीं नौकरी नहीं मिलती ।”
“लेकिन हमारी तो मकान के लिए बैंक की मासिक किस्त ही चौबीस हजार रुपए है ।अब आपको सिर्फ चौबीस हजार रुपए ही तो मिलेंगे। वह सारा पैसा बैंक की किस्त चुकाने में चला जाएगा । कितने अरमानों के साथ हमने यह मकान खरीदा था। सोचा था, अपना मकान हो जाएगा । किस्त देते रहेंगे और सुखी – सुखी जीवन कट जाएगा । अब तो वेतन बढ़ने की बजाय आधा रह गया।”
” यही तो मैं भी सोच रहा हूँ कि अब क्या होगा ? अब तो घर का सारा खर्चा सिर्फ तुम्हारी आमदनी से ही चलेगा ।”- अविनाश ने जब यह कहा तो दमयंती ने साड़ी का पल्लू अपने मुँह में दबा लिया और रुआँसी होकर बोली “मेरी बारह हजार रुपए महीने की आमदनी से घर का खर्चा कैसे चलेगा?”
” मैं भी तो इसी सोच में हूँ। नौकर को आज ही मना करना पड़ेगा ।यह तो जरूरी है ।”
दमयंती ने तुरंत अगली योजना पर काम करना शुरू कर दिया । अब सिर्फ बारह हजार रुपए महीने में घर का खर्चा चलाना था क्योंकि दमयंती को नौकरी करके सिर्फ इतने रुपए ही वेतन के मिलते थे। फोन लगाकर घर के नौकर रामू को उसने दो टूक जवाब दे दिया ” अब हम तुमको नौकरी पर नहीं रख सकते ।”
रामू पास ही रहता था। आधे घंटे के अंदर ही घर पर आ धमका। दुखड़ा रोने लगा” मालकिन आप तो धनवान हैं। पैसे वाली हैं ।हम गरीबों को नौकरी से निकाल देंगी तो हमारे खर्चे कैसे चलेंगे ?”
दमयंती ने दुखी होकर भी अपना धैर्य नहीं खोया ।शांति से कहा “यह जो मकान देख रहे हो , यह सब बैंक के लोन पर खरीदा हुआ है ।अब उसकी किस्त कहाँ से चुकाएंगे ? तुम्हारे बाबूजी की तनखा आधी रह गई है । सारा पैसा बैंक की किस्त चुकाने में निकल रहा है । और मुझे सिर्फ बारह हजार रुपए वेतन के मिलते हैं। अब मुझे तुमको नौकरी पर रखने की जरूरत नहीं है। हमारी हैसियत ही अब इतनी नहीं है कि हम घर में नौकर रख सकें। अब तो खुद ही झाड़ू पोछा और बर्तन माँजना होगा । खाना भी खुद ही बनाना होगा। मैं सब काम कर लूँगी।”
दुखी होकर रामू चला गया। वह भी मालकिन की विवशता को समझ रहा था। घर पहुँच कर जैसे ही रामू ने घर में प्रवेश किया तो देखा उधार का तगादा लेकर सेठ धनीराम खड़े हुए थे।
” भाई महीने की किस्त लेने आया हूँ। बारह सौ रुपए दे दो।”
रामू ने खाली जेब झाड़ दी और धनीराम से कहा “अब तो जेब में न फूटी कौड़ी है और न ही आने की उम्मीद है । मेरी नौकरी समाप्त हो गई है । अब तो भगवान ही मालिक है । आपका उधार कब चुकता कर पाऊँगा, कह नहीं सकता ।”धनीराम ने दो मिनट में ही रामू की विवशता को समझ लिया ।उनके सामने अब कहने के लिए कुछ भी नहीं था। बस इतना ही मुँह से निकला ” जब नौकरी लग जाए और पैसा आ जाए तो मेरी किस्तें चुका देना।”- कहकर चले गए ।
रास्ते भर धनीराम यही सोच रहे थे कि यह तीसरा व्यक्ति है , जिसने मुझे किस्त देने से मना कर दिया ।अब मेरे घर के खर्चे कैसे चलेंगे ?
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 7615451