हम भी इंसान हैं …
बताओ तो सही हमारा क्या है कसूर ?
अपने फर्ज़ के लिए आए अपनो से दूर ।
हमारा भी तो है घर,परिवार और बच्चे ,
सोचो ! कितनी मुश्किल से हुए होंगे दूर ।
प्रशासनिक/ निजी नौकरी ही सही ,
देश हित में फर्ज़ से बंधे चले आए इतनी दूर ।.
सरकार हमें देती है वेतन के सिवा और क्या !
अपने परिवार को पालने हेतु हम भी मजबूर ।.
यह महामारी हमारे लिए भी जोखिम से कम नहीं,
चूंकि मानवता को बचाने का यही चला आया दस्तूर ।
हम तुमसे कुछ नहीं मांगते एक सम्मान के सिवा ,
हाँ ! मगर सहयोग और मानवता की अपेक्षा भी है ज़रूर
गर तुमसे इतनी भी इंसानियत निभानी है मुश्किल ,
तो कम से कम हमारी जान के दुश्मन तो ना बनो ,
काल बैठा है अपना पंजा फैलाकर,फिर कैसा गुरूर !
उचित तो है यही के देश का और हमारा सहयोग करो,
गर सब एकजुट होंगे इस महामारी से जीतेंगे हम ज़रूर ।