हम बेजान हैं।
कैसे बताएं तुमको कि हम कितना परेशान है।
जिस्म में हरकत है फिर भी लगे हम बेजान हैं।।1।।
हाल क्या बताए हम तुमको अपनी गुरबतों का।
जहां भी जाएं हमें मिलता नहीं कोई काम है।।2।।
बच्चे भी अब बढ़ रहें हैं उम्र में हम ढल रहे हैं।
पर उनकी खातिर किया ना कुछ इन्तज़ाम है।।3।।
जिन्दगी बन करके इक खिलौना बिक रही है।
देखो बाजारों में लग रहा यूं हुस्न का दाम है।।4।।
हर रिश्ते को बेगाना करके वो चली जाती हैं।
बेटियां होती बस कुछ ही दिन की मेहमान हैं।।5।।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई जानें क्या पहचान है।
मजहबों के हिसाब से बट गया अब इन्सान है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ