हम बेकार हो गए।
हर चिराग के पास खुद की अपनी रोशनी नहीं होती |
इशारों को समझो जनाब इनकी कोई बोली नहीं होती ||1||
तुम्हारे मिलने के अंदाज से हम बिल्कुल ही बेकार हो गए |
यह जानते हो तुम भी हर इंसान की तकदीर सोई नहीं होती ||2||
तू सोचकर तो देख खुद में कि ऐसे हालात हैं क्यूँ मेरे |
एक आम से इंसान की इस तरह की जिंदगी नहीं होती ||3||
हाथों की लकीरों में क्या पढ़ता है कि आगे क्या होगा |
किस्मत के सहारे बैठे इंसान की कोई किस्मत नहीं होती ||4||
यह सोच कर दुनिया में मैं जिंदगी जी लूंगा अपनी |
कि खुदा से मांगी गयी हर दुआ शायद पूरी नहीं होती ||5||
एक अंदाज है मेरा जिसके लिए मैं जिंदगी जी लूंगा |
वरना जिंदगी तो कभी किसी की हमेशा पूरी नहीं होती ||6||
छूकर उसको यह उजला रिश्ता तू मैला मत कर देना |
सोच लो वरना किरदारों की कहीं धुलाई नहीं होती ||7||
ताज मोहम्मद
लखनऊ