हम बस देखते रहे।
वो जाते रहे हम बस देखते रहे।।
ना उन्होनें कुछ कहा,,
ना हमने ही कुछ कहा,,
नज़रों से बस अश्क गिरते रहे।।
जानें कब इतने फासले दरम्यां हो गए।।
खामोश वह रहे,,
खामोश हम रहे,,
यूं बिना जमीं के हम आसमां हो गए।।
हमारी इश्के कश्ती को साहिल ना मिले।।
जिनको समझते थे,,
हम अपना रहनुमां,,
आज दुश्मनों में वह भी शामिल हो गए।।
हरे भरे सब्जबाग सारे ही बयाबां हो गए।।
जिंदगी तरसी बूंद बूंद आब की,,
धूल ही धूल उड़े बस खाक की,,
बस्तियां उजड़ी बाकी बस निशां रह गए।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ