हम बच्चे दीवाली मनाते थे
हम बच्चे दीवाली मनाते थे
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हम बच्चे दीवाली मनाते थे,
पटाखे हम खूब बजाते थे।
मुर्गा छाप की वो लंबी लड़ी,
बजती थी जैसे लगी झड़ी,
कई यूँ ही फुस हो जाते थे।
हम बच्चे दीवाली मनाते थे।
बड़े बजाते पटाखे बड़े-बड़े,
हम देखें चुप हो खड़े-खड़े,
जो न बजे वो उठा लाते थे।
हम बच्चे दीवाली मनाते थे।
अनार निकाले लाल दाने,
फिरकी घूमती गोल खाने,
सांप गोली से सर्प बनाते थे।
हम बच्चे दीवाली मनाते थे।
फुलझड़ियाँ खूब चलाई थी,
मोमबत्ती से आग लगाई थी,
तेल के दीये हम जलाते थे।
हम बच्चे दीवाली मनाते थे।
मनसीरत प्रातः को हम उठे,
ढूंढते पटाखे जो थे न बजे,
मसाला निकाल सुलगते थे।
हम बच्चे दीवाली मनाते थे।
हम बच्चे दीवाली मनाते थे,
पटाखे हम खूब बजाते थे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)