√√हम पीते हैं जो मदिरा (भक्ति- गीत)*
हम पीते हैं जो मदिरा (भक्ति- गीत)
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हम पीते हैं जो मदिरा ,बाजारों में कब आती
(1)
हम पीते हैं घर पर ,मदिरालय कब जाने वाले
हम पीते हैं सुबह-सुबह ,जब होते नहीं उजाले
हम पीते हैं वह मदिरा ,जो सदा मुफ्त की पाई
हम पीते हैं वह मदिरा ,अज्ञात स्रोत से आई
पता नहीं वह कौन न जाने ,है जो हमें पिलाती
हम पीते हैं जो मदिरा ,बाजारों में कब आती
(2)
इस मदिरा को जो पीता है ,रोम-रोम जग जाता
इस मदिरा को जो पीता है ,जुड़ता खुद से नाता
इस मदिरा को जब पीते हैं ,चक्षु सभी खुलते हैं
इस मदिरा को जब पीते हैं ,संशय सब धुलते हैं
इस मदिरा में चमत्कार क्या-क्या यह कब बतलाती
हम पीते हैं जो मदिरा ,बाजारों में कब आती
(3)
हमें हमारे गुरु ने मदिरा ,पीना कला सिखाई
हमें हमारे गुरु ने मदिरा ,होती क्या दिखलाई
कहाँ हमारे वश में होता है मदिरा यह पाना
कहाँ हमारे वश में मदिरा का आना रोजाना
यह मदिरा अपनी मस्ती में खुद ही आती-जाती
हम पीते हैं जो मदिरा ,बाजारों में कब आती
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451