हम पागल क्यूँ हो रहे हैं?
है उसको खो रहे हैं
जो नहीँ है उसके लिए रो रहे हैं
हम पागल क्यूँ हो रहे हैं?
नाव में छेद है मगर उस पर जाने की चाहत ।
डूबने लगे अब कैसी राहत?
दिल रो रहा है अंदर से
फिर भी चेहरे पर मुस्कुराहट?
नाव पे बैठे बाकी सब को भी हम खो रहे हैं ।
हम पागल क्यूँ हो रहे हैं?
जो बीत गया उसपे शोक
वर्तमान के साथ नोंक झोंक
आगे के लिए ख़ुद ही काँटे बोए
भविष्य को दिया अंधकार में झोंक ।
आंखों में बेवक़ूफ़ी लिए हम आराम से सो रहे हैं
हम पागल क्यूँ हो रहे हैं?
सजनी रूठ के मायके चली गई ।
बिल्ली दूध रोटी खाइके चली गई ।
पानी का एक बर्तन बचा था
उसमें चिड़िया नहाइके चली गई
बैठ के साजन जी अब रो रहे हैं
पूछे “सुधीरा” हम पागल क्यूँ हो रहे हैं?
जो समझना चाहिये उसे हम समझते नहीँ है ।
जिसे समझ रहे हैं वो ज़रूरी नहीँ ।
जाति धर्म के नाम पर आपस में लड़ाई करते फिरते
जो कि बिल्कुल भी ज़रूरी नहीँ है ।
नाव इंसानियत का भी डुबो रहे हैँ
आखिर हम पागल क्यूँ हो रहे हैँ