हम न कह पाए
हम न कह पाए
बात इतनी सी थी पर बात हम न कह पाए
उससे मिलने को मुलाक़ात हम न कह पाए।
खुदकों इतना था भिगोया अश्क़ों से हमने
तेज़ बारिश को भी बरसात हम न कह पाए।
हम से वो हर दफ़ा हारा पर इस क़दर हारा
उसकी किसी हार को मात हम न कह पाए।
काश एक मर्तबा तो हमको देख लेता ढंग से
उसके देखने को तो ख़ैरात हम न कह पाए।
हमें उस बे-वफ़ा के जाने का दुख नहीं मगर
ग़म है उसे ज़ोर से बद-ज़ात हम न कह पाए।
जॉनी अहमद ‘क़ैस’