हम नज़ाकत में हया की…..
हम नज़ाकत में हया की उँगलियाँ दाबे रहे,
वो मौहब्बत की कहानी गुफ्तुगू में कह गया !
चाँद कल मुंडेर पर सहमा हुआ आया नजर,
जुगनुओं सा छिप छिपाता बादलों में बह गया !
इल्तिजा उल्फत में करना इश्क की तौहीन है,
रूबरू जो रूह से था वार सारे सह गया !
कश्मकश में लिखते-लिखते फिर मिटाने की,
रौशनाई खप गई और खत अधूरा रह गया !
✍️ लोकेन्द्र ज़हर