हम देख नहीं पा रहे
ऊंची हो रही है दीवारें
बाहर झांक नहीं पा रहे
है अंधेरा यहां या
हम देख नहीं पा रहे।।
धूल जम गई है
घर के शीशों पर
अब उनमें कुछ भी तो
हम देख नहीं पा रहे ।।
खोद ली है कब्र उसने
अब जनाज़े की तैयारी है
है मौत सामने मगर
हम देख नहीं पा रहे।।
है वो हमारे सामने खड़ा
जो पुकार रहा है हमें
फिर भी न जाने क्यों
हम उसे देख नहीं पा रहे।।
क्या हो गया है हमको
बिलख रहे है भूखे बच्चे
मांग रहे हैं सड़कों पर भीख
हम ये भी देख नहीं पा रहे।।
बढ़ रही है महंगाई
लाखों सपने है टूट रहे
अब छूट रहे सांसों के तार
हम ये भी देख नहीं पा रहे।।
वादे किए थे जो हमने
आज हम वो भी भूल रहे
ये कैसा चश्मा पहना है जो
हम ये भी देख नहीं पा रहे।।