हम दर्पण भी दिखलाते हैं
हम भक्त नहीं, शुभचिंतक हैं,
हम सच्ची बात बताते हैं
केवल गुणगान नहीं करते,
हम दर्पण भी दिखलाते हैं
क्यों जनता तुमसे विमुख हुई,
क्यों उसने तुम्हें हराया है
थोड़ा तो चिंतन करो तात
कैसे विश्वास गँवाया है
जो स्वप्न दिखाए थे तुमने,
वो ध्वस्त हुए से जाते हैं
वोटर भी तो अपना निर्णय
बस बैलेट से बतलाते हैं
हम भक्त नहीं शुभचिंतक हैं
हम सच्ची बात बताते हैं
वो अन्त्योदय का स्वप्न आज
तक भी सपना ही लगता है
वह.निर्धन और दलित व्यक्ति,
अब भी हारा सा दिखता है
जो पहरेदार लगाए हैं,
वो माल जीमते जाते हैं
नौकरशाही से त्रस्त लोग,
पल पल मिटते ही जाते हैं
हम भक्त नहीं शुभचिंतक हैं,
हम सच्ची बात बताते हैं
केवल गुणगान नहीं करते
हम दर्पण भी दिखलाते हैं
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद