मैं मतवाला मस्त फकीरा
मैं मतवाला मस्त फकीरा, कोई हमारा नहीं है।
इस जग का हमें मोह माया , तनिक भी प्यारा नहीं है।
धरती पर मनुज का जन्म तो, मिलता बहुत ही भाग्य से,
मिलता सबको फिर से ऐसा ,भाग्य दोबारा नहीं है।
मंजिल तलक खुदबखुद रास्ते,लेकर जायेंगे हमको,
है दम अगर इन हौसले में, तो हम नकारा नहीं हैं ।
इतना भी न अभी अंधेरा ,कि हमको कुछ नहीं दिखता,
ऐसे गर्दिश में अबतक तो, अपना सितारा नहीं है।
इस मतलब परस्त दुनिया में,भरोसा हो भला किस पर,
इस दुनिया में अबतक अपना,कोई सहारा नहीं है।
जर्रे-जर्रे में जन्नत है,नजर भरकर जड़ा देखो,
नजरें बिन तो कभी किसी का,होता नजारा नहीं है।
थोड़े में ही जगा दिया है, बहुत कुछ की तमन्नायें,
हम क्या करें कि थोड़े में अब,होता गुजारा नहीं है ।
कुछ तो थी गलतफहमियाँ कुछ नजर अंदाजियाँ भी थी,
माना कि हम बुरे हैं ऐसे, मगर आवारा नहीं हैं।
मर भी जाऊँ अगर इश्क में,तो न रहेगा कोई गम,
इतना ही तो बतला दो क्यों, हमें स्वीकारा नहीं है।
-लक्ष्मी सिंह