” हम तो बस लाचार हैं ” !!
धरती फटती जाती है जी ,
पानी की दरकार है !
सब कुछ दाँव लगा बैठे हैं ,
खड़ी सामने हार है !!
कदम कदम पर जगत कुएं की ,
खुदे हुए नलकूप हैं !
जिनके हिस्से पानी भैया ,
वे तो मानो भूप हैं !
खाद बीज की क़ीमत भारी ,
हम तो बस लाचार हैं !!
पशुपालन आसान कहाँ है ,
दूध दही को तरस गए !
दो जून की मिली जो रोटी ,
हम तो जैसे हरष गए !
आज किराये पर बोनी है ,
मंहगाई की मार है !!
विधना भी छल करता हमसे ,
रोज परीक्षा सामने !
कभी भूख से कदम डिगे तो ,
कौन खड़ा है थामने !
सरकारी प्रयास थोथे हैं ,
अभी लगे ना पार हैं !!
है चुनाव अब नारे झंडे ,
हमदर्दी का दौर है !
अपनी गाथा किसे कहें अब ,
दिखे न कोई छोर है !
यहाँ मुनादी सब करते हैं ,
सुनता कौन गुहार है !!
बिन कर्ज़े के काम चले ना ,
चिंता की यह बात है !
मेहनत हाड़ तोड़ अपनी है ,
और न कुछ भी हाथ है !
फसल चढ़े परवान अगर तो ,
लगता हाथ बहार है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )