हम तो परदे खोल रहे हैं
हम तो परदे खोल रहे हैं
क्यों सिंहासन डोल रहे हैं
बेड़ा गरक हो चुका उनका
फिर भी नफरत घोल रहे हैं
खुसुर पुसुर है घर पर, जिनके
खातों में कुछ झोल रहे हैं
बदल रहे इतिहास देश का
और बदल भूगोल रहे हैं
कितनी खुश है, नन्हीं गुड़िया
उसके सिक्के बोल रहे हैं
फिंके आज रद्दी की माफिक
जो इक दिन अनमोल रहे हैं
झाँक रहे हैं बगलें अब तो
जो भी गोल मटोल रहे हैं
पापी सभी सजा पायेंगे
जिनके जैसे रोल रहें हैं
बड़े नोट कोने में छुपकर
आज समय को तोल रहे हैं