हम तेरे हैं ऋणी
तुम-सा वीर विद्वान पाके, भारत है धनी।
हे भारत विधि विधाता! हम तेरे हैं ऋणी।
घनघोर निरक्षरता की अंधेरा
था काल बना समक्ष खड़ा।
ज्ञान की मशाल लिए भीम तू,
निडर निष्पक्ष हो के, आगे बढ़ा।
तेरी कर्मठता से आधुनिक भारत है बनी ।
हे संविधान निर्माता ! हम तेरे हैं ऋणी।
मानवता हमसे हो रही थी ,
ऊँच-नीच से कोसों दूर।
जात-पाँत और कर्मकांड में,
फंस गये थे होके मजबूर ।
भीम कहे, अब हमें अन्याय नहीं सहनी ।
हे दलित कष्टहर्ता! हम तेरे हैं ऋणी ।
करके तुने अस्पृश्यता का अंत,
दिलाई हमें धार्मिक स्वतंत्रता ।
महिला विशेषाधिकार दिलाई,
उन्मूलन की आर्थिक असमानता ।
हम दलितों के लिए तू, प्रेम-वत्सला जननी।
हे आडम्बर मुक्तिदाता! हम तेरे हैं ऋणी । ।
अंधविश्वास की तोड़ रस्में ,
विज्ञानवाद का सहारा लिया ।
पंचशील,अनीश्वरवाद दर्शन से
पहले भारतीय बनने का नारा दिया।
हे महामानव!अनुसरण करें तेरा ये”मनी”।
हे विधिवेत्ता ! हम तेरे हैं ऋणी ।