हम तुम
नदी किनारे से हम – तुम ,
यूं मिलकर भी बिछड़ गए।
घी मक्खन से हम – तुम,
यूं घुलमिल कर अनजान हो गए।।
क्या -क्या बिसराने के कोशिश मे हम – तुम
जाने किन- किन यादों में खो गए ।
बरस दर बरस बीत रहे ,
यादों के पतझड़ नहीं गए।।
गुजरी भुलाने के कोशिश में,
पृष्ठ धोखे के फिर से खुल गए आज।