हम तुम तुम हम
हम तुम तुम हम चले उस छोर
जहाँ नहीं पहुँच पांए कोई और
आओ संग उठ चले साथ साथ
जहाँ कोई नहीं हो आस पास
सबसे ऊँची पहाड़ी शिखर पर
सुनसान शालीन और एकान्त
आओ चल़े लिए हाथों में हाथ
कहीं भी कभी भी न छोड़े साथ
निर्झरिणी कीनारें बहता हो पानी
चलेंगें संग साथ स्वच्छ सा पानी
कहीँ किसी को ना हो अता पता
हम दोनों सिवा ना हो कोई सखा
निर्झर का हो बस गिरता हो पानी
अठखेलियाँ खेले दीवाना दीवानी
खुले से गगन में संग हो विहंगम
हम ही दोनों उड़ेंगे ऊँची उड़ान
बन जाएंगे हम दो अज्ञान नादान
लंबे सफर में ना हो कोई थकान
खो जाएंगे वहांँ पर बन अंजान
जहाँ ना कोई झमेला ना ईंसान
स्नेही प्रेमवशीभूत प्रेमी भावनाएं
प्रेम भवसागर में खूब गोते लगाएं
हम तुम तुम हम चले उस छोर
जहाँ नहीं पहुँच पाएं कोई और
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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