हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है
हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है
***************************
हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है,
हम रहें या मिटें तुम्हें क्या फर्क है।
बेरहम बड़े हो दिलबर दया न आई,
हम मिले या लड़े तुम्हें क्या फर्क है।
दो कदम न चल पाये कैसी डगर है,
यूँ रुकें या चलें तुम्हें क्या फर्क है।
दिल जलाकर गये बेवफाई दिखाई,
कुछ कहें या सुनें तुम्हें क्या फर्क है।
हैँ शमा को जला मनसीरत बुझा है,
हम जलें या बुझे तुम्हें क्या फर्क है।
***************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल।