” हम गतिशील और संवेदनशील बन ही न पाए तो हम मित्र कैसे बन पाएंगे ?”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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हम इन्टरनेट क्षितिज के चमकते सितारे बन गए हैं ! पलक झपकते हम ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर लेते हैं ! सारी गतिविधियों का आभास हमें क्षण भर में लग जाते हैं ! किताबों के पन्नों से उलझने की प्रक्रिया को अधिकांशतः इन यंत्रों ने कम कर दिया ! विश्व के तमाम विषयों का इसमें समावेश हो चुका है ! बस आदेश इसे दें और चिराग के जिन्न की तरह आपके सवालों के जबाब क्षण में हाजिर ! पुराने मित्र मिल जाते हैं ..नए मित्र बन जाते हैं ! कोई भेद भाव नहीं ..ना छोटे बड़े का प्रश्न …हम सब फेसबुक फ्रेंड हैं ! हम अब इन्टरनेट के धुरंधर माने जाने लगे ! …हम सुबह शाम अपने कलेजे से लगा कर इसे रखते हैं ! सुबह जब हम उठते हैं तो सर्वप्रथम इन्हीं यंत्रों का निरीक्षण करते हैं ..किस -किसने हमारे पोस्टों को लाइक किया ?…किसने रिक्वेस्ट भेजा है ?….व्हाटअप्प को भली भांति निहारते हैं ..किसने -किसने ..क्या -क्या भेजा है ? इसके बाद ही हम कुछ करते हैं ! ….हम निपूर्ण तो हो गए हैं पर ….” गतिशीलता और संवेदनशीलता “….के मामलों में हम अधिकांशतः कमजोर होते गए !…. फ्रेंड का रिक्वेस्ट आया ..और हम फ्रेंड भी बन गए ! मित्रता के बाद या और कभी किसी मित्र ने हमें पत्र लिखा पर हम उन पत्रों को अनदेखी कर देते हैं …हम जन्म दिन की बधाई देते हैं ..पत्र लिखते हैं ! … व्हाटअप्प पर अधिकांशतः यह देखा गया है कि..प्रतिक्रिया में कुछ लिखना तो दूर ..आभार ..स्नेह ..अभिवादन …को भी हम लिखना नहीं चाहते !… इस असंवेदनशीलता के रोग से हमलोग प्रायः -प्रायः ग्रसित होते चले आ रहे हैं ! ….हम लाखों लोगों से तो जुड़ गए हैं ..लोग हमें धनुर्धरभी कहने लगे हैं ! ….शीर्ष पर पहुँचने के बाद हम जान बुझकर गतिरहित बन जाते हैं ….यह बातें सबको रास नहीं आ सकती ! आपके पास ..अस्त्र है ..शस्त्र है ..गांडीव है ..है भुजाओं में बल तो हम गतिशीलता से मुंह क्यों मोड़ें …………….?
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड