हम का करीं-२
हम का करीं-२
देत धोखा आदमी के बन्दगी हम का करीं।
छीनि ले घन की बदौलत ज़िन्दगी हम का करीं।।१।।
धन उगाही में न जे के लाज आवे ला तनिक,
बा फरेबी देखि के शर्मिंदगी हम का करीं।।२।।
साॅंच के जामा पहिन के झूठ के जे साथ दे,
हाथ अपने बा लभेरत गन्दगी हम का करीं।।३।।
खैरियत पूछल हमेशा साथ दीहल हर घरी,
आन के आपन बनावल बा कमी हम का करीं।४।।
ना मरम समझने ज़माना का भितरिया बाति बा,
लोग सब ईहे कहे , बा लाज़मी हम का करीं।।५।।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**