हम कहां जा रहे हैं __ कविता
****हम कहां जा रहे है ***
अतीत या भविष्य की नहीं _
मैं बात वर्तमान की करता हूं।
देख दुनिया की उथल-पुथल,
मैं ध्यान उसी का धरता हूं।।
***हम कहां जा रहे है***
समझ नहीं पा रहा हूं__
यह दुनिया में क्या चल रहा है।
विज्ञान के आधुनिक युग में ,
आखिर ,
इंसान इतना क्यों बहक रहा है।।
नफरत की आंधियों में ,
शराफत सादगी उड़ती जा रही है।
युद्ध दंगे फसाद लूटमार _
जिधर देखूं उधर ही तो पा रहा हूं।।
***आखिर हम कहां जा रहे है***
मंत्र कौन सा मैं लाऊं,
इस जग को कैसे समझाऊं।
गाता हूं बस गीत प्रेम के,
जनमानस को कैसे रटाऊं।।
जब तक जीवन “अनुनय” मेरा_
मिलने वालों को समझा रहा हूं।।
***आखिर हम कहां जा रहे है***
राजेश व्यास अनुनय