हम और हमारा रिश्ता (कविता)
क्या कहूँ.?
मैं भी नही जानता,
यह रिश्ता है,
जिश्म और सूक्ष्म का,
तू जहाँ जहाँ होती है,
मैं तेरे साथ-साथ रहता हूँ,
तू पानी की बूंद है और
मैं पानी का दरिया बन बहता हूँ..।।
तू ना सोच,
मैं था, मैं नही था
वस सोच,
मैं हूँ, मैं रहूँगा,
तेरे साथ,
यहां भी, वहाँ भी
यह संयोग नही जोड़ है,
मिलने का, मिले रहने का
अधूरे से, पूरे का,
जान और जिश्म का
आँख और प्रकाश का
होंठ और हंसी का
तुझमें मैं और मुझमें तू का..।।