हम इतने सभ्य है कि मत पूछो
हम इतने सभ्य है कि मत पूछो
जब भी कभी किन्नरों को देखते हैं तो बस
उनको देखते ही जाते हैं….
हम ठहरे समाज के स्वघोषित ठेकेदार
हमने उनको उनकी माँ से अलग किया
फिर उनसे ताली भी बजवाया है
पढ़ लिख गए तो क्या हुआ?
हमने तो उनको अपने घरों में नचवाया है
ये सोचकर कि इनकी दुआ में असर होता है
अपनी दहलीज़ के अंदर कदम रखवाया है
वरना वो किस काम के हैं न नर हैं न नारी
मुझे तो लगता है उनके सीने में दिल भी नही होते
न ही जिस्म में उनके हमारी तरह लाल लहू।
इसलिए तो हम ठेकेदारों ने
उनको समाज से दूर फिकवाया है