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30 Oct 2021 · 1 min read

हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं

तेरे पैंतरे को तेरे दंगल को खूब समझते हैं
हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं

हाकिम हमें ग्रहों की चाल मे मत उलझा
हम,सूरज,चांद,मंगल को खूब समझते हैं

उससे कहो बीहड़ की कहानियाँ न सुनाए
चम्बल के लोग चम्बल को खूब समझते हैं

इन्होंने सर्दियाँ गुजारी हैं नंगे बदन रहकर
ये गरीब लोग कम्बल को खूब समझते हैं

जो बच्चे गाँव की आबोहवा मे पले बढ़े हैं
वो नदिया,पोखर,जंगल को खूब समझते हैं
मारूफ आलम

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