*हम आजाद होकर रहेंगे (कहानी)*
हम आजाद होकर रहेंगे (कहानी)
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“सोच लो, अगर तिरंगे को फहराते हुए पुलिस ने देख लिया तो गोली चलाए बिना नहीं मानेगी। जान का खतरा है ।”-रूपेश ने विनीत से कहा।
” मुझे मालूम है । तिरंगा देखते ही पुलिस अधिकारी गोली चला देगा । जान हथेली पर लेकर तो यह काम करना ही पड़ेगा। लेकिन बिना ऐसा किए वातावरण में राष्ट्रीय चेतना भी तो नहीं आएगी । मैं मारा गया तो कोई बात नहीं, तुम मेरे माता-पिता का ध्यान रख लेना । मैं उनका एकमात्र पुत्र हूॅं।”- विनीत ने दृढ़ता किंतु मार्मिकता के साथ जब यह कहा तो रुपेश की ऑंखों में भी ऑंसू आ गए । उसने रूपेश को पहले तो कंधे पर हाथ रखकर थपथपाया और फिर कसकर गले से लगा लिया ।
कुछ देर तक शांति छाई रही। किसी से कुछ बोलते न बन रहा था । दरअसल बात ही कुछ ऐसी थी । आजादी की लड़ाई का दौर था । तिरंगा हाथ में लेकर चलने की अनुमति नहीं थी । एक बार तो विनीत के मन में आया भी कि कलेक्टर को प्रार्थना-पत्र लिखकर यह पूछ लिया जाए कि क्या हमें जुलूस में तिरंगा फहराने की अनुमति दी जाएगी ? लेकिन फिर उसने स्वयं ही अपने आपको जवाब दिया कि भला कलेक्टर यह अनुमति क्यों देने लगेगा ? उसका तो काम ही भारत में अंग्रेजी राज को कभी न डूबने देना है । फिर तो हमारा जुलूस भी प्रतिबंधित हो जाएगा । निकलने से पहले ही उस पर पहरा लग जाएगा और जो थोड़ी-बहुत जागृति हम समाज में लाना चाहते हैं, वह भी नहीं आ पाएगी ।
दोनों मित्रों ने योजना बना ली कि जब स्वतंत्रतावादियों का जुलूस चौराहे के पास पहुंचेगा तो विनीत अपने कुर्ते की जेब से तिरंगा निकालेगा और रूपेश से डंडा लेकर उसे जितना ऊंचा हो सकेगा, हवा में लहरा कर वंदे मातरम के नारे लगाना शुरू कर देगा । पुलिस की गोली अगर लगती है, तो उसे स्वीकार किया जाएगा ।
अगले दिन योजना के अनुसार जलूस चला । करीब चालीस लोग जुलूस में थे। इन सब को जेल जाने की आशंका थी। हवालात में बंद करना ,बेंत पड़ना यह तो मामूली बात थी । वंदे मातरम के नारे लगाते हुए झंडा फहराने की योजना केवल विनीत और रूपेश को पता थी। पुलिस पूरे रास्ते इस इंतजार में थी कि कोई देशभक्ति का ऐसा काम यह आंदोलनकारी करें कि जिसकी अनुमति शासन से नहीं ली गई हो और हम इन पर घोड़े चढ़ाकर बेंत बरसाना शुरू कर दें। लेकिन आंदोलनकारी भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे । जलूस शांतिपूर्वक चला और चौराहे के पास आते ही विनीत ने तिरंगा कुर्ते की जेब से निकाला । रुपेश पास में ही चल रहा था । उसके हाथ में डंडा था । विनीत ने झटपट झंडे में डंडा लगाकर खूब ऊंचा हवा में फहरा दिया और दोनों मित्रों ने वंदे मातरम-वंदे मातरम के नारे आरंभ कर दिए।
बस फिर क्या था, तिरंगे को हवा में फहरा हुआ देखकर सभी आंदोलनकारियों में मानो अभूतपूर्व जोश आ गया । वंदे मातरम के नारे सभी आंदोलनकारी लगाने लगे । सड़क पर जो लोग चल रहे थे, वह भी इस अद्भुत दृश्य को देखकर रोमांचित हो उठे । उनमें से भी कई लोगों ने आंदोलनकारियों का उत्साह बढ़ाते हुए तथा देश के प्रति अपनी निष्ठा दर्शाते हुए हाथ उठाकर तथा मुठ्ठी बांधकर वंदे मातरम के नारे लगाए ।
अंग्रेज पुलिस अधिकारी यह देख कर आग-बबूला हो गया। उसने आदेश दिया -“लाठियां बरसाओ ! घोड़ों से हमला करो !”
आंदोलनकारियों को बेंत बरसा कर तुरंत लहूलुहान करने का काम शुरू हो गया । विनीत आठ-दस लोगों के सुरक्षा चक्र में झंडे को ऊपर उठाए हुए था । पुलिस अधिकारी को एक-एक सेकंड भारी पड़ रहा था । वह किसी हालत में एक क्षण के लिए भी तिरंगे को हवा में लहराता हुआ नहीं देखना चाहता था । अंत में उसकी धैर्य-शक्ति ने जवाब दे दिया । उसने बंदूक हाथ में ली। कारतूस लगाया, निशाना साधा और गोली चला दी । धॉंएं की आवाज के साथ ही विनीत के शरीर से खून का फव्वारा छूट पड़ा । झंडा अभी भी विनीत के हाथ में था । इससे पहले कि वह गिरे, रूपेश ने उसे अपने हाथों में थाम लिया । यह योजना का अंग नहीं था लेकिन रूपेश को यह स्वीकार नहीं था कि उसके मित्र ने जान पर खेलकर जो आजादी की अलख सड़कों पर जलाने का काम हाथ में लिया वह अधूरा रह जाए । पुलिस अधिकारी की बंदूक से दूसरी गोली निकली। धॉंएं की आवाज के साथ रुपेश के शरीर से भी खून का फव्वारा छूट पड़ा ।
तिरंगा दोनों मित्रों ने अब अपने हाथों में ले लिया था । विनीत ने बुदबुदाते हुए रूपेश से कहा “एक दिन जल्दी ही आएगा, जब हम इन्हीं सड़कों पर तिरंगे को शान से फहराते हुए निकलेंगे । अंग्रेजी शासन का अंत जरूर होगा । हम आजाद होकर रहेंगे।”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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