हम आज़ाद या गुलाम ?
आज़ाद नहीं हम फिर भी ,
आज़ादी का ढोंग दिखाए फिरते हैं।
हैं तो अपने मन के गुलाम पर ,
दुनिआ मुट्ठी में करना चाहते हैं।।१।।
सुबह शाम बस एक ही चिंतन ,
धन,वैभव संतति और नारी।
जिस दिन प्राण तन से निकला ,
बस लोटा भर राख अपनी कहानी ।।२ ।।
गलत आदतों के चंगुल में ,
फसा हुआ यह मेरा मन।
और और की भूख से ,
कितना लाचार हुआ, यह मेरा मन।। ३।।
इच्छा से भरा ये मेरा मन ,
मेरा इतना शोषण करता है।
की शांति ढूढ़ने के लिए ,
यह मुझको मदिरालय लेजाता है।। ४।।
इच्छा के कारन मेरा मन,
ईर्ष्या से भर जाता है।
उस ईर्ष्या के चक्कर में ,
मैं कर्ज में डूबा जाता हूँ।। ५।।
कर्ज में डूब डूबकर मैं ,
जैसे तैसे ६० वर्ष तक आता हूँ।
आगे बस फिर क्या अस्पताल ,
घर और पेंशन के चक्कर लगाता हूँ।। ६।।
ऐसे करते करते एक दिन ,
बूढा जर्जर हो जाता हूँ।
और इसी मन के कारागार में रहके,
परलोक गमन को जाता हूँ।। ७।।
बस इतनी मेरी आज़ादी है ,
जीवन खुद से व्यर्थ गवाया है।
मानव जीवन को मनमर्जी से जीके,
पशु योनि को पाया है।। ८।।