“हम अपने सफर में बहुत दूर आए हैं”
हम अपने सफर में बहुत दूर चले आए हैं।
सुकून को दुढ़ते अपने घर से निकल आए हैं।
एक अजीब सी कशमकश थीं ज़िन्दगी में,
इसलिए सारे बंधन तोड़ आए हैं।
हम अपने सफर में बहुत दूर चले आए हैं।
सुकून को दुढ़ते अपने घर से निकल आए हैं।
चले तो मंजिल की तलाश में बहुत तेज़ी से थे,
फ़िर भी ना जाने क्यूं बीचराह तक ही आए हैं
हम अपने सफर में बहुत दूर चले आए हैं।
सुकून को दुढ़ते अपने घर से निकल आए हैं।
ना जाने कौनसा इन्तहा बाकी मेरा,
यहीं सोचकर ज़िन्दगी से लड़ने आए हैं।
हम अपने सफर में बहुत दूर चले आए हैं।
सुकून को दुढ़ते अपने घर से निकल आए हैं।
बहुत तकलीफ़ देते हैं अपने,
अब तो प्यार ,जज्बात,रिश्ते – नाते सब को पीछे छोड़ आए हैं।
हम अपने सफर में बहुत दूर चले आए हैं।
सुकून को दुढ़ते अपने घर से निकल आए हैं।
अक्सर अपनो में घिरा पाते हैं,
जब ये सोचते हैं कि ज़िन्दगी के भंवर से निकाल आए हैं
हम अपने सफर में बहुत दूर चले आए हैं।
सुकून को दुढ़ते अपने घर से निकल आए हैं।