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11 Aug 2020 · 1 min read

हम अपने दिल के हाथ ही बेज़ार हो गये

ग़ज़ल – 221 2121 1221 212
हम अपने दिल के हाथ ही बेज़ार हो गये।
जलवों का तेरे जब से तलवगार हो गये।।

दिल चाहता नहीं कि रिहाई हो क़ैद से।
जुल्फ़ों में तेरी जब से गिरफ्तार हो गये।।

होठों पे आपके जो तबस्सुम बिखर गया।
सारे चमन तो देखिए गुलज़ार हो गये।।

अब ढूंढ़ते हैं लोग कहानी कोई नयी।
गोया हम अपने प्यार में अख़बार हो गये।।

आयेंगे वो “अनीस ” अयादत को तो मेरी।
बस हम यही तो सोच के बीमार हो गये।।
-अनीस शाह”अनीस”

2 Likes · 2 Comments · 335 Views
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