हम अपने दर्द को जब गज़लों में गाने लगे
हम अपने दर्द को जब गज़लों में गाने लगे
सारे परिन्दें रो पड़े फूल मुरझाने लगे
यूँ मासूमियत से ज़िंदगी कान में कह गई
तुम पहले अपने थे अब ज़रा बेगाने लगे
एक तूफां ने उजाड़ दी वो सारी बस्तियाँ
जिन्हें बसाने में कभी शायद ज़माने लगे
शराब में नशा कम पर वो साकी नशीला था
आंखों से जो पिलाई पैर डगमगाने लगे
जो छोड़ चले थे ऊँचे आसमानों के लिए
वो पंछी फ़िर पेड़ पर घोंसले बनाने लगे