हम अपनी छोटी सी दुनियां के भगवान बने फिरते हैं।
हम अपनी छोटी सी दुनियां के भगवान बने फिरते हैं।
चैन का खाता बिन दमड़ी का पर धनवान बने फिरते हैं।
नदी लपेटे घूम रहे हैं , पर होठों से प्यास टपकती,
भरे सरोवर में तन डूबा , पर सूखी है मन की धरती,
इस अथाह के उथलेपन की , माया को हम समझ न पाते,
पढ़ते रहते पोथी पत्रा , औ सज्ञान बने फिरते हैं।
हम अपनी …………….
उपर चंदन तिलक जनेऊ , पीतांबर है पंडिताई है,
भीतर जरा झांककर देखो , विषय वासना की काई है,
एक दिवस में अनगिन मौकों पर, अपना मन कीच नहाता,
घोर बिडम्वन देखो शुचिता की पहचान , बने फिरते हैं।
हम अपनी ………………
रोज नवाते माथा , अपनी सत्ता पर कुछ आंच न आए,
झूठ बिखर न जाएं अपने , सम्मुख ऐसी सांच न आए,
छण भंगुर धरती पर अपने , अहंकार के ठोस महल हैं,
कंकर पत्थर से भी दोयम , पर हिमवान बने फिरते हैं।
हम अपनी ………….।
कुमारकलहंस।