हम अजनबी हुए तेरे शहर में
हम अजनबी हुए तेरे शहर में
तुम्हें ढूँढते रहते हैं हर प्रहर में
कभी खिलते थे फूल प्यार के
उजड़ी सी बगिया तेरे शहर में
तुमने दामन छोड़ा मंझदार में
मुन्तजिर मैं अब तक शहर में
खो गया जीवन तारीकियों में
तम मिटेगा कभी तो शहर में
खुद को जिंदा रखा अब तक
दम तोड़ जाएंगे तेरे शहर में
तुम चाँद थे मेरी नूर ए नजर
वो छिप गया है चाँद शहर में
संग तेरे जीने की जो चाह थी
वो चाह फना हो गई शहर में
तेरी मेरी मोहब्बत दास्तान हुई
चाँद तारे गवाह हैं तेरे शहर मे
हो गई हो गुम ,तुम यहीं कहीं
तुम्हें ढूँढते रहते हैं तेरे शहर में
हम अजनबी हुए तेरे शहर में
तुम्हें ढूँढते रहते हैं हर प्रहर में
सुखविंद्र सिंह मनसीरत