हम अग्रोहा के वासी ( गीत )
हम अग्रोहा के वासी ( गीत )
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सौ- सौ नमन राज्य में जिनके रहती नहीं उदासी
तुम थे राजा अग्रसेन, हम अग्रोहा के वासी
(1)
पकड़- पकड़ पर उँगली तुमने चलना हमें सिखाया
एक कुटुम्बी-भाव, राज्य में जन-जन में फैलाया
उसी पुरातन समता की, छाए फिर काश उजासी
(2)
तुमने हमको नए गोत्र में नव-पहचान दिलाई
यज्ञ अठारह किए, पुरातन भेद- दृष्टि बिसराई
तुमने जोड़ा हमें इस तरह, खिलते बारहमासी
(3)
यज्ञों में पशु-हिंसा का क्रम तुमने ही रुकवाया
सब जीवों में एक प्राण है, तुमने ही समझाया
दृढ़ प्रतिज्ञ तुमने झेली थी, निंदा अच्छी- खासी
(4)
एक ईंट का एक रुपै का दर्शन तुमसे पाया
एक लाख जन .हुए कुटुंबी जगत देख चकराया
तुम समता के मूल्य-प्रदाता, हम जीवन- अभ्यासी
तुम थे राजा अग्रसेन, हम अग्रोहा के वासी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451