*हमेशा हारे हैं (हास्य-व्यंग्य गीतिका)*
हमेशा हारे हैं (हास्य-व्यंग्य गीतिका)
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(1)
टिकिया और समोसे खिलवाकर लगवाते नारे हैं
भाड़े के टट्टू हैं जिनके साथ हमेशा हारे हैं
(2)
चॉंदी के जूते के बल पर टिकट भले ही ले आए
नैया पार लगी कब उन की, बेचारे फटमारे हैं
(3)
नेताजी ने अंतर्मन से जब समर्थकों को देखा
समझ गए यह मालपुओं को खाने वाले सारे हैं
(4)
दल-बदलू थाली के बैंगन ,टिकट जीतकर जब आए
समझ गई जनता दलाल दल में कुंडलिया मारे हैं
(5)
साहिब चाहे जिसे टिकट दो ,आप हमारे चिर-मालिक
हम मतदाता और समर्थक मतलब दास तुम्हारे हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451