हमें ना बोलो प्रेम विरोधी
हमें ना बोलो प्रेम विरोधी
धरा कृष्ण की हम कान्हा के हम पहचानें गहन रास को…
नमन प्रेम को, नमन नेह को, नमन चाह को नमन राग को…
रक्तशिरा में नेह प्रवाहित हृदय प्यार का ही मंदिर है..
सदा प्यार को हमने पूजा सत्यम शिवम् और सुंदर है..
लैला मजनू, सोनी महिवाल कब भूले हम हीर रांझ को..
नमन प्रेम को, नमन नेह को, नमन चाह को नमन राग को…
कहते हो तुम प्रेम विरोधी हमे नेह से नेह नहीं है..
रोज, प्रपोज, टेड्डी, आलिंगन, चुम्बन से परहेज़ यहीं है..
नादानों इतिहास को परखो रचा हमीने प्रेम फाग को…
नमन प्रेम को, नमन नेह को, नमन चाह को नमन राग को…
अपना राग न केवल तन से जन्मों तक के संग बनाते..
तुमने पाया बस एक दिवस हम जीवन भर रस रंग मनाते..
मैं तुम का अस्तित्व तिरोहित, सरसाते स्नेह बाग को…
नमन प्रेम को, नमन नेह को, नमन चाह को नमन राग को…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान