हमें तुम भुल गए
तुम शहर को क्या गए सजना,
पलटकर न देखा हमें एक बार।
लिखा कई संदेश मैंने तुम्हें
पर तुमनें उत्तर न दिया एक बार।
जब शहर को तुम जा रहे थे,
तब तुमने हमसे कहा था।
मै भी तेरे से अलग कहां रह पाँऊगा,
मै भी तो रहता हूँ तेरे लिए बेकरार।
जल्द आऊँगा मैं तुम्हें शहर से लेने,
कर मुझ पर तुम एतबार।
तुझसे ही तो आता है,
मेरे जीवन और आँगन मे बहार ।
वर्षों बीत गये आजतक
मैं करती रही तेरा इन्तज़ार,
पर तुमने तो मेरे भरोसे का
ही कर दिया तार – तार।
हर पल – हर क्षण यह नयन
आज भी तुम्हे ढूंढ रही है,
शायद दिख जाते मुझे एकबार
आ जाती मेरे जीवन में बहार।
मैने तो अपना सर्वस्य
तुम पर दिया था वार
पर शायद तुमकों हमसे
न था कोई सच्चा प्यार।
ऐसी क्या कमीं रह गई मेरे प्यार में
जो हमें छोड़कर तुमने
शहर में बसा लिया
अपना दूसरा घर-बार।
चल जा रे हरजाई
अब हमें भी न है
तुमसे कोई सरोकार
मैं भी तेरे बिना अपना जीवन
अकेले ही लूँगी सँवार।
~ अनामिका