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3 Feb 2021 · 1 min read

हमारे हाल की दुनिया को है ख़बर लेकिन।

ग़ज़ल

हमारे हाल की दुनिया को है ख़बर लेकिन
नहीं है मेह्रबाँ हम पर तिरी नज़र लेकिन

बहुत अंधेरी है ये रात मानता हूँ मैं
अंधेरी रात की हो जाएगी सहर लेकिन

ख़ुदा से माँगता रहता हूँ रात दिन तुमको
दुआ ये होती नहीं मेरी बा-असर लेकिन

ज़माने हो गए मुझको तलाश करते हुए
मिली न मुझको कहीं तेरी रहगुज़र लेकिन

बना है इश्क़ में दुश्मन मिरा ज़माना सब
तिरे दयार में आकर हूँ बे-ख़तर लेकिन

मुहब्बतों का है पैग़ाम सब के होटों पर
भङक रहा है दिलों में कोई शरर लेकिन

बहुत सताती है अब ज़िन्दगी “क़मर” मुझको
हर एक हाल में करनी है ये बसर लेकिन

जावेद क़मर फ़ीरोज़ाबादी

1 Like · 238 Views
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