हमारे सपने अनेक हुए
हमारे सपने अनेक हुए
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मै तुम जब से एक हुए,
हमारे सपने अनेक हुए।
हम दोनों प्रेम-पथ चले,
प्यार मे घुटने टेक हुए।
दिन – रात देखते आये,
ख्वाब भी हाइटेक हुए।
जमाने के रंग निराले हैँ,
पस्त हमारे विवेक हुए।
मनसीरत जीना दुश्कर,
मरकर ही एकमेक हुए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)