*हमारे विवाह की रूबी जयंती*
हमारे विवाह की रूबी जयंती
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हमारे विवाह को जब 13 जुलाई 2023 को चालीस वर्ष पूरे होने को हुए, तब एक दिन श्रीमती जी ने कहा कि बेटे-बहुऍं हमारे विवाह की रूबी जयंती मनाना चाहते हैं।
हम सोच में पड़ गए कि यह रूबी जयंती क्या होती है ? कहा कि विवाह की रजत जयंती सुनी थी, विवाह की स्वर्णजयंती भी सुनी थी, अब यह रूबी जयंती क्या होती है ?
पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा “जब विवाह को चालीस वर्ष हो जाते हैं, तब रूबी जयंती मनाई जाती है।”
हमने बिना देर किए मोबाइल उठाया तथा गूगल पर “विवाह की रूबी जयंती” लिखकर सर्च किया । तब हमें विस्तार से जानकारी मिली कि पच्चीस वर्ष के अवसर पर रजत जयंती और पचास वर्ष पर स्वर्ण जयंती के बीच में हर पॉंच साल बाद विशिष्ट जयंतियॉं पड़ती हैं । विवाह के तीस वर्ष होने पर मोती जयंती, पैंतीस वर्ष पर मूंगा जयंती, चालीसवें वर्ष पर माणिक अर्थात रूबी जयंती तथा पैतालीसवें वर्ष पर नीलम जयंती पड़ती है । जब पचास वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब स्वर्ण जयंती मनाई जाती है। जब हमने गूगल से प्राप्त सूचनाऍं श्रीमती जी के साथ साझा कीं तो वह खिल-खिलाकर हॅंसने लगीं और बोलीं -“आजकल स्वर्ण जयंती कितने से लोग मना पाते हैं ? विवाह के पचास वर्ष बीतते-बीतते दोनों में से कोई एक या तो स्वर्ग सिधार जाता है या फिर स्वास्थ्य इतना खराब हो जाता है कि वर्षगॉंठ मनाने का कोई मतलब ही नहीं रहता ।”
हमने श्रीमती जी के विचारों से सहमति प्रकट की, लेकिन कहा कि इस नाटकबाजी की क्या आवश्यकता है ? हम लोग ठीक-ठाक तरीके से अपने दांपत्य जीवन का निर्वहन कर ही रहे हैं ?
श्रीमती जी ने पुनः मुस्कुराते हुए कहा “जब शादी की तथा उसका उत्सव मनाया गया तो अब रूबी जयंती को नाटकबाजी कैसे कह सकते हैं ? या तो वह भी नाटकबाजी थी या फिर यह भी एक उत्सव ही है ।”
हमने श्रीमती जी के तर्क से सहमति प्रकट की और कहा कि रूबी जयंती अपने आप में कोई गलत बात नहीं है । मनाई जा सकती है, लेकिन जयमाल की पुनरावृत्ति ठीक नहीं रहेगी।
श्रीमती जी ने कहा “जो बच्चे करना चाहते हैं, वह उन्हें करने दो। जयमाल की पुनरावृत्ति के सही या गलत होने की उलझन में मत उलझो । सब की खुशी में अपनी खुशी मानते हुए जो हो रहा है, उसमें शामिल होकर आनंद का अनुभव करो।” उसके बाद हमने सारे कार्यक्रमों को अपनी सहमति प्रदान कर दी।
एक होटल में केवल घर-परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ छोटा-सा कार्यक्रम हमारे बेटे-बहुओं ने रखा। चालीस-पचास लोग हो गए। ड्रेस कोड महिलाओं के लिए लाल रंग की साड़ी तथा पुरुषों के लिए काले रंग की कमीज थी। हम दोनों ने भी उसी के अनुरूप वस्त्र पहने। जयमाला भी हुई। फोटो भी खिंचे । फोटोग्राफर ने बार-बार अनुरोध किया कि आप दोनों थोड़ा निकट आइए। फोटोग्राफर का अनुरोध केवल कुछ सीमा तक ही हम दोनों ने स्वीकार किया। फिर पत्नी ने भी कह दिया “बस ! इससे ज्यादा यह सब नहीं चलेगा!”
मेरी पुत्रवधू ने माइक पर मुझे विवाह से संबंधित संस्मरण सुनाने के लिए बुलाया। मैंने कहा “हमारे जमाने में जब लड़कियॉं शादी के लायक हो जाती थीं, तब उनका एक विशेष प्रकार का फोटो फोटोग्राफर के स्टूडियो में जाकर खिंचवाया जाता था। वह ब्लैक एंड व्हाइट फोटो होता था। आकार में पोस्टकार्ड से कुछ बड़ा ! जिस जगह शादी की बात चलाई जाती थी, वह ब्लैक एंड व्हाइट फोटो मध्यस्थ के माध्यम से भिजवाया जाता था । अगर फोटो पसंद है तो आगे बात चलती थी। हमारी शादी में भी इसी प्रकार से लड़की का ब्लैक एंड व्हाइट फोटो विचार के लिए आया था । फिर लड़की को प्रत्यक्ष रूप से देखने और बातचीत करने के लिए एक स्थान पर संक्षिप्त एवं गोपनीय आयोजन रखा गया था। बातचीत के विषय लगभग ऐसे ही थे कि आपका नाम क्या है ? आदि आदि ।”
श्रीमती जी ने भी इस अवसर पर रिश्ता पक्का होने के संबंध में अपने संस्मरण सुनाए। एक विशेष बात यह भी हुई कि जयमाला डालने के उपरांत श्रीमती जी ने हमारे पैर छुए । हमने कहा कि इसकी क्या आवश्यकता है ? वह बोलीं “हमने शादी के समय भी जयमाला पर ऐसा ही किया था ।” हमें वास्तव में इस प्रसंग की कोई याद नहीं थी।
विवाह की रूबी जयंती पर बेटे-बहुओं और पोते-पोतियों ने नृत्य किया । इसमें घर-परिवार के सभी लोग शामिल हुए। अंत में रात्रिभोज के उपरांत कार्यक्रम समाप्त हुआ । सब की खुशी में सम्मिलित होना ही जीवन का सार है। इस दृष्टि से विवाह का ‘रूबी उत्सव’ बेटों और बहुओं ने आयोजित किया, इसके लिए उनको बधाई ।
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रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451