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11 Aug 2024 · 1 min read

हमारे प्यार की सरहद नहीं

उनकी नफ़रतों की हद नहीं
हमारे प्यार की सरहद नहीं

हम आसमाँ की चाह रखते हैं
कई हैं लोग जिनकी छत नहीं

दिया दर्द हम इल्ज़ाम रखते हैं
जो मिला शुकर की नियत नहीं

न होते आम मीठे वृक्ष पर
जो मिलती धूप की सौगत नहीं

बदलते वक़्त संग होगा गलत
जो उनको आज लगता है सही

कभी फुरसतों में झाँकना भीतर
मिलेगी और एक दुनियाँ नई

समंदर जो सदा शांत है दिखता
वो बैठा है लिए तूफाँ कई

पलट कर वक्त एक रोज़ आएगा
बस एक भ्रम है लौटेगा नहीं

टूटा एक ख्वाब खुद को ही मिटा डाला
हैं घायल मुट्ठीयाँ सौ ख्वाब टूटे हैं यहीँ

– क्षमा उर्मिला

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