हमारे प्यार की सरहद नहीं
उनकी नफ़रतों की हद नहीं
हमारे प्यार की सरहद नहीं
हम आसमाँ की चाह रखते हैं
कई हैं लोग जिनकी छत नहीं
दिया दर्द हम इल्ज़ाम रखते हैं
जो मिला शुकर की नियत नहीं
न होते आम मीठे वृक्ष पर
जो मिलती धूप की सौगत नहीं
बदलते वक़्त संग होगा गलत
जो उनको आज लगता है सही
कभी फुरसतों में झाँकना भीतर
मिलेगी और एक दुनियाँ नई
समंदर जो सदा शांत है दिखता
वो बैठा है लिए तूफाँ कई
पलट कर वक्त एक रोज़ आएगा
बस एक भ्रम है लौटेगा नहीं
टूटा एक ख्वाब खुद को ही मिटा डाला
हैं घायल मुट्ठीयाँ सौ ख्वाब टूटे हैं यहीँ
– क्षमा उर्मिला