हमारे त्यौहार: हमारा विक्रम संवत
हमारे त्यौहार: हमारा विक्रम संवत
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विक्रम संवत भारत की आत्मा है। हमारे सभी त्यौहार दो हजार से ज्यादा वर्षों से इसी विक्रम संवत के अनुसार मनाए जा रहे हैं। विक्रम संवत ईसवी सन से भी 57 वर्ष पुराना है ।हमारे राष्ट्रीय महापुरुषों के जन्मोत्सव हजारों साल से विक्रम संवत के अनुसार ही मनाए जा रहे हैं। भगवान राम का जन्मदिन रामनवमी चेत्र शुक्ल नवमी को, भगवान कृष्ण का जन्म दिन भादो की अष्टमी को जन्माष्टमी के रूप में तथा वैशाख की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म दिन मनाया जाता है ।होली दीपावली दशहरा रक्षा बंधन सब विक्रम सम्वत से संचालित हैं। विक्रम संवत चांद पर आधारित संवत है। इसी से अमावस्या को दीपावली हो पाई तथा गुरु पूर्णिमा आषाढ़ की पूर्णमासी को मनाई गई । चांद देखकर करवा चौथ है तथा तारे देख कर अहोई अष्टमी मनाने का क्रम भी कार्तिक कृष्ण पक्ष में इसी संवत के अनुसार प्रचलित है ।तात्पर्य यह कि विक्रम संवत में हमारी उल्लासमयी गतिविधियों का लगभग पूरा हिस्सा समा जाता है ।इसी में श्राद्ध पक्ष अर्थात कनागत भी क्वार मास के कृष्ण पक्ष में पूरे पखवाड़े भर पूर्वजों के प्रति स्मरण का स्रोत बन जाते हैं।
विक्रम संवत में 1 वर्ष में लगभग 355 दिन बैठते हैं। हर तीसरे साल 1 महीना लौंद अर्थात अधिक मास का पड़ता है तथा इस प्रकार मौसम का फर्क नहीं पड़ पाता। वर्ष में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीना 29-30 दिन का लगभग होता है। 1 महीने में 2 पखवाड़े (पक्ष )होते हैं ।एक पखवाड़ा लगभग 14-15 दिन का बैठता है।इनकी गणना चंद्रमा से होती है ।चंद्रमा आकाश में गोलाकार जब हो जाता है ,तब मास का अंत हो कर पूर्णिमा हो जाती है। पूर्णिमा के बाद नया माह आरंभ होता है तथा चंद्रमा दिन-प्रतिदिन घटता रहता है । घटते -घटते चंद्रमा अदृश्य हो जाता है ।इसे अमावस्या कहते हैं। तथा एक पखवाड़ा पूर्ण हुआ माना जाता है। फिर दूसरे पखवाड़े में चंद्रमा बढ़ना शुरू करता है तथा द्वितीय तिथि अर्थात दूज को चांद की बहुत पतली लकीर -सी दिखती है। माह का प्रथम पखवाड़ा कृष्ण पक्ष (बदी) तथा दूसरा शुक्ल पक्ष (सुदी) कहलाता है।
वर्ष के 12 महीने क्रम से इस प्रकार हैंः– चैत्र (चैत) , बैसाख (वैशाख), जेठ (ज्येष्ठ), असाढ़(आषाढ़), सावन (श्रावण), भादो( भाद्रपद), क्वार( अश्विन) कार्तिक ,अगहन( मार्गशीर्ष ),पूस( पौष) , महा( मार्गशीर्ष), फागुन( फाल्गुन)। नव वर्ष का आरंभ चैत्र माह के दूसरे पखवाड़े अर्थात चेत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से होता है।।
लेखक:रवि प्रकाश, रामपुर
हमारे त्यौहार:हमारा विक्रम संवत
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रचयिता:रवि प्रकाश, रामपुर
(1)
चैत्र शुक्ल से है शुरू, नवसंवत व्यवहार
देवी मां को पूजता ,हर घर हर परिवार
हर घर हर परिवार ,शुक्ल नवमी जब आती
रामजन्म इसलिए, रामनवमी कहलाती
परशुराम का जन्म, तृतीया अक्षय आई
शुक्ल पक्ष वैशाख ,परम पावन कहलाई
(2)
बैसाखी थी पूर्णिमा, जन्मे बुद्ध महान
सत्य अहिंसा का मिला, जग को इनसे ज्ञान
जग को इनसे ज्ञान, दशहरा गंगा आता
जेठ शुक्ल शुभ मास, दिवस दस है कहलाता
पूनम का आषाढ़, पूर्णिमा गुरु कहलाया
दिवस न ऐसा और, वर्ष में फिर है आया
(3)
सावन का उत्सव महा , रक्षाबंधन शान
संबंधों में ताजगी , इसकी है पहचान
इसकी है पहचान ,बहन -भाई का नाता
राखी का त्योहार ,सदा पूनो को आता
भादो की तिथि आठ, बदी अष्टमी कहाई
मुरलीधर श्री कृष्ण, धरा आए कन्हाई
(4)
शुक्ल पक्ष पावन सुनो ,भादो की तिथि चार
परम भक्त माता पिता, गणपति का त्योहार
गणपति का त्योहार ,घरों में पूजे जाते
मेले लगते रोज ,भजन गायक -जन गाते
पितरों का शुभ श्राद्ध, क्वार की बदी कहाई
पखवाड़े में याद ,पूर्वजों की नित आई
(5)
शरद काल की आ गई ,शुभ नवरात्रि महान
दुर्गा – पूजा इन दिनों, चारों ओर प्रधान
चारों ओर प्रधान, शुक्ल आश्विन की माया
दिखते चारों ओर , रास- नृत्यों को पाया
क्वार सुदी दस दिवस, राम ने रावण मारा
हुई सत्य की विजय ,दशहरा पावन प्यारा
(6)
दुनिया में होती कहाँ, अद्भुत करवा चौथ
रिश्ता पति से सर्वदा ,जब तक आए मौत
जब तक आए मौत ,कार्तिक माह मनाता
कृष्ण पक्ष की चार, परम शुभ तिथि को आता
दिन भर रख उपवास, चंद्र दर्शन कर खाती
पति- पत्नी में प्यार, सदा यह रीति बढ़ाती
(7)
दिवस अहोई अष्टमी ,कृष्ण कार्तिक आठ
बच्चों के हित कर रही, मां प्रभु- पूजा पाठ
मां प्रभु- पूजा-पाठ, देखकर तारे खाती
बच्चे चमकें सदा, आस हर रोज लगाती
मां का अनुपम प्यार, न समता इसकी कोई
दिवस कहो या रात, सदा संतति में खोई
(8)
धनतेरस धनवंतरी, धन का है त्यौहार
धन लक्ष्मी जी दे रहीं, सेहत है आधार
सेहत है आधार, लाभ शुभ सही कहाया
चंचल आई- गई , हमेशा रहती माया
तन-मन रखिए साफ ,यही धनतेरस कहता
निर्मल जिसकी बुद्धि ,सदा खुशियों में रहता
(9)
दीवाली सबसे बड़ा, भारत का त्यौहार
घोर अमावस कार्तिकी, जग में है अंधियार
जग में है अंधियार , दीप आ इसे हराता
जलता दीपक एक, अंधेरा मार गिराता
अंधेरे पर सदा , उजाला पड़ता भारी
हर घर में हो दीप, अमावस की तैयारी
(10)
गोवर्धन पूजा हुई ,अन्नकूट का भोग
कार्तिक शुक्ल मनाइए, गो सेवा का योग
गो सेवा का योग ,दूज भैया फिर आती
अगहन पूस सदैव ,माह में सर्दी छाती
शुक्ल पक्ष तिथि पाँच,माघ बासंती गाता
यह बसंत पंचमी, वर्ष में दिवस कहाता
(11)
फागुन की मस्ती महा, फागुन है अनमोल
फागुन में रस घोलती, कुदरत दिल को खोल
कुदरत दिल को खोल, कृष्ण-तेरह जब आती
शिव तेरस यह धरा ,नाचती खूब मनाती
होली का त्योहार ,चाँद पूनम का आया
जला लकड़ियां नाच, सभी ने इसे मनाया
(12)
चैत्र कृष्ण पहली हुई , दिन रंगो के नाम
इस दिन कटुता द्वेष का, जीवन में क्या काम
जीवन में क्या काम ,रंग यह टेसू वाले
उड़ता खूब गुलाल, मस्तियों में मतवाले
दिल से दिल की बात ,कराने आती होली
ढोलक लेकर चली ,सड़क पर देखो टोली