हमारे ठाठ मत पूछो, पराँठे घर में खाते हैं(मुक्तक )
हमारे ठाठ मत पूछो, पराँठे घर में खाते हैं(मुक्तक )
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हमारे ठाठ मत पूछो, पराँठे घर में खाते हैं
हरी धनिए की चटनी दाल में छौंका लगाते हैं
सड़क पर घूमते हैं दिन में मस्ती में निडर होकर
हुई जब रात तो बेफिक्र हम सोने को जाते हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99 97 61 5451