हमारी सभ्यता
माना हमारी सभ्यता
बहुत पुरानी है।
पर आज भी उसमें
वही रवानी है ।
माना पहुँच गए है,
हम आज चाँद पर।
पर चाँद को मामा
हम आज भी बुला रहे है।
आज भी भूमि यह
देवों की भूमि है।
आज भी भूमि यह
ऋषियों की भूमि है।
आज भी तो पत्थरों में
ईश्वर को खोज रहे है।
आज भी तो पेड़ो को
हम पूज रहें है।
माना की थोड़े से हम
बदल गए है।
माँ को मॉम ,
पिता को डैड बोल रहे है।
पर आज भी तो उनके लिए
हाथ जोड़कर खड़े हैं।
आज भी हम अपनी
सभ्यता कहाँ छोड़ रहे।
आज भी अतिथी यहाँ
ईश्वर का स्वरूप है।
आज भी नदियाँ
यहाँ माँ का रूप है
माना कि पवन की गति को,
पीछे छोड़ चले है।
पर आज भी मुसीबतों में,
ईश्वर को ढूंढ़ रहे।
आज भी हम अपनी
संस्कृति कहाँ छोड़ रहे हैं
आज भी तो हम अपने
संस्कार को समेटे खड़े हैं।
माना की ज़िन्दगी का रेस
अकेले दौड़ रहे है,
पर जीत का जश्न
आज भी साथ मना रहे है।
खुशी है इस बात की है
हमें की हमने कभी किसी से
कुछ छीना नहीं है
अपने दम पर हिन्दुस्तान का
विकास कर रहे है।
आज भी तो हम
सबकी मदद कर रहे हैं।
किसी को कुछ न कुछ
हम दे ही रहे हैं।
खुशी इस बात की
हमें हो रही है।
अब हम फिर स्वदेशी
अपनाने लगे हैं।
देश के विकास में
अपना हाथ बंटाने लगे है।
हर जन-जन स्वच्छता को
अपनाने लगे है।
अब हम बहुत कुछ
बनाने लगे हैं,
अब हम आत्मनिर्भर
बनने लगे हैं।
-अनामिका