हमारी संस्कृति
हमारी संस्कृति
यह देश यहां पर स्त्री को ,
मानें धन्या भगिनी , माता,
छोटी बालाओं में सबको,
दिखता है कन्या का नाता।
पत्नी को सम आदर देते,
नारी को पूजा जाता है।
यह संस्कार भारत का है,
सदियों की गूंज सुनाता है।
पत्नी यदि पतिव्रता होती,
पति भी पत्नीव्रत होते हैं।
शिक्षा कौशल और विद्या में,
कुछ भिन्न प्रवृत बस होते हैं।
हैं वचन विवाहित जोड़े के,
शुभ सप्तपदी संग तय होते
शुभ त्याग , प्रेम , विश्वास भाव,
हैं ,अहंभाव सब क्षय होते।
केवल नव वय, नव यौवन में,
मिलता न यहां पर मान सदा।
ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती वय है।
बढ़ता जाता सम्मान यदा।
स्त्री गृहणी बनकर घर में,
निज गृह का मान बढ़ाती है। सद्कार्यों हित बाहर जाकर
निज श्रम से पुष्प खिलाती है।
करना बराबरी पुरुषों से,
उद्देश्य न उसका रहा कभी।
खुद जननी है निर्मात्री है।
हो दंभ पूर्ण न कहा कभी ।
संस्कृति और संस्कार अपने ,
गौरव का भान कराते हैं।
पूरे समाज को स्त्री के,
गौरव का ज्ञान कराते हैं।
इंदु पाराशर