हमारी रौशनी पर पहरा क्यों
मेरे हिस्से का तुम सब मुझे सिर्फ इतवार दे दों
गम बांट सकूँ मैं जिनके संग वो परिवार दे दों
मैं भी चाहता हूँ पंख लगा के उड़ना आसमाँ में
मेरी ख्वाइशों को भी थोड़ा सा अधिकार दे दों
मेरे ख्यालात भी तुम जैसे ही है प्यारे साथियों
थोड़ा हार जाओ तुम, मुझें जीत उपहार दे दों
इंसानियत जिंदा है हमारे दिल में आजमा लेना
हमारे गिरतें अश्कों को भी अपना प्यार दे दों
सब इल्ज़ाम हम पर ही जाने क्यों लगाते है
पुलिस वाला है तो गर्दन पर तलवार दे दों
हम भी दिल रखतें है हमकों भी दर्द होता है
हमारे लिए सोचों हमें भी हमारा संसार दे दों
मत बनो क़ातिल इंसानियत के तुम कभी
हमारी रौशनी पे पहरा क्यों जवाबदार दे दों
अशोक सपड़ा हमदर्द
9968237538
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