हमारी योग्यता पर सवाल क्यो १
हमारी योग्यता पर सवाल क्यो
रख तानो को मन पर ख्यालो को खोजते है
छोड सवालो को लालची मन का पता नही
शादी पर लडको की योग्यता पर सवाल क्यो ?
बचपन से डर रख मन में
मां-बाप का सहमी नजर मे रहते है
पता नही लापरवाही से बचकर
जेब खर्ची खातिर योग्यता का भरमार
फिर हमारी योग्यता का सवाल क्यो?
बन मकर पापा के
हम नदी में छोड़ जाते हैं
दम घुटता हमारा अब सभ्यता तोड़ आते है
आवाजाही से मन पर तानो की भरमार देख
योग्यता का सवाल खड़ा क्यो ?
कही किताबी पन्नो में घुस मन की योग्यता को जगायी थी समय की रफ्तार, में हाथखर्च खातिर अपनी योग्यता भुलायी थी मां-बाप की सेवा को बोझ ना फर्ज समझ उसी लगाव पर योग्यता
को भूल उनके आशीर्वाद से अपनी योग्यता पुनः जगायी थी
फिर भी लड़की वालों की नजर में हमारी योग्यता पर सवाल
क्यो. ?
हां उनकी खातिर हमने कभी किसी का घर ना तोड़ा था
ओरो की हंसी खातिर हमने अपना मन उनसे जोड़ा था
रख पसीना मेहनत का, रख लगाव मा बाप की सेवा से
हमने उस पापा की परी को पुण्य कर्मो से जोड़ा था
काम-काज का रख ख्याल
खाली क्यों यह अब मयान होकर
तैयार नन्गी मेहनत को काटने पर,
तन तन की आवाज़ से मौत का खौफ नही
फिर भी उस पापा की परी को लाने पर
हमारी योग्यता पर सवाल क्यो १.
क्या बिन नौकरी उसे किचड़ में डालेंगे
पता नही उन कांटो को किचड़ तो कमल घर होता
है उसे हम अपने मन में डालेंगे।
फिर भी उस पापा की परी को
हमारी योग्यता पर सवाल क्यो ?
खुद की पंचायत का पता नहीं।
सासू मां की आयत का खता कही,
पिहर में लाड़ लेकर क्यो ओरो के लाड़ को तुड़वाती
है।
तुमे अपनी योग्यता का पता नहीं
, फिर मेरी योग्यता पर सवाल क्यो ?
खुद तो परपोसी होकर स्वपोषी की जीवन रडार करती
है।
कमी देख मेरी हाथ धोकर परपोषी बन मेरा जीवन क्यो
गड़ार करती हो।
फिर भी हमारी योग्यता पर सवाल क्यो