हमारी बेटी
हमारे मन को समझती है हमारी बेटी |
कभी भी जिद नहीं करती है हमारी बेटी ||
मैं जब भी देखता सफ्कत भरी निगाहों से |
मेरे गुनाहों को धो देती है हमारी बेटी ||
हमारे फ़िक्र में रहती हमारी माँ जैसे |
बुरी बाला से बचाती है हमारी बेटी ||
उसी के दम से है महफूज सल्तनत मेरी |
बददुवाओं से भी बचाती है हमारी बेटी ||
फ़िजा में जब भी उड़ाता हूँ भरोसा करके |
चाँद-सूरज सी चमकती है हमारी बेटी ||
अली अहमद”संगम”